Welcome 2 Udaiur एजुकेशन के साथ ही कॅरिअर को लेकर अब यूथ गंभीर है। सरकारी नौकरी और दिन-प्रतिदिन बढ़ती प्रतिस्पर्धा के दौर में ऐसा कुछ करने की ललक जो स्वयं के कॅरिअर के साथ-साथ दूसरों को भी रोजगार दे सकें ऐसी स्टडी की दिशा में कदम उठा रहा है यूथ।
कॉलेज हो या पार्टी, कोई खास दिन हो या फेस्टिवल क्या पहना जाए, कौनसा ट्रेंड बाजार में चल रहा है, पहनाने के साथ कौनसा बैग साथ लिया जाए या हेयर कटिंग कैसी हो, ऐसेसरी कौनसी हो ये सभी बातें चाहे स्टूडेंट हो या युवक-युवतियों के लिए खास मैटर रखती है। स्टडी के साथ कॅरिअर पर भी खास फोकस रखने वाले स्टूडेंट पहले दिन से यह सोच बना लेते हैं कि कुछ ऐसी स्टडी पर फोकस हो जो फेम, नेम के साथ पैसा भी दिलाए।
किसी के यहां नौकरी करने से बेहतर स्वयं के हुनर से स्वरोजगार से जुड़ा जाए और अन्य लोगों को भी रोजगार से जोडक़र बेरोजगारी के अभिशाप को दूर किया जाए। ऐसा आत्मविश्वास लेकर यूथ काम करें तो समाज में वह दिन दूर नहीं होगा जब कोई व्यक्ति कहे कि उसके पास काम नहीं हैं।
इसी धारणा को ध्यान में रखकर कुछ ऐसा ही स्वरोजगार से जोडऩे वाले पाठ्यक्रमों का संचालन कर रहा है सुखाडिय़ा विश्वविद्यालय का सामाजिक एवं मानविकी महाविद्यालय। आट्र्स कॉलेज में संचालित डिप्लोमा इन फैशन डिजाइनिंग व डिप्लोमा इन टैक्सटाइल में प्रवेश लेने वाले छात्र-छात्राओं के दिलों-दिमाग में एक जज्बा देखते ही बनता है, जिसमें यूथ फैशन ट्रेंड को अपने अंदाज में तैयार कर अपने स्टाइल से उपभोक्ताओं को इम्प्रेस करता है।
बारहवीं कक्षा उत्र्तीण छात्र-छात्राएं डिप्लोमा के माध्यम से फैशन डिजाइनिंग और टैक्सटाइल डिजाइनिंग में कॅरिअर बना रहे हैं, यहीं नहीं वे न केवल स्वयं का सिलाई केंद्र खोल चुके हैं बल्कि स्वरोजगार से जुडक़र अन्य जरूरतमंदों को भी रोजगार दे रहे हैं। कॉलेज में एक वर्षीय पाठ्यक्रम में 20-20 सीटों पर प्रवेश के लिए छात्र-छात्राओं की इन्क्वायरी बारहवीं कक्षा के रिजल्ट के साथ ही शुरू हो जाती है।
सीटें रहती है फुल
-बीते पांच सालों का रिकार्ड उठाकर देखा जाए तो तयशुदा सीटें फुल रहती है। बीते तीन सालों से छात्र-छात्राओं की बढ़ी संख्या और डिमांड को ध्यान में रखते हुए सीटों की संख्या को डबल करना पड़ा। ऐसे में डिप्लोमा इन फैशन डिजाइनिंग तथा डिप्लोमा इन टैक्साइल कोर्स में 20-20 सीटों के बजाए 40 -40 छात्र-छात्राओं ने प्रवेश लिया।
स्टडी के साथ न्यू क्रिएशन
-फैशन डिजाइन व टैक्सटाइल डिप्लोमा कोर्स के माध्यम से वर्ष पर्यंत फैशन व क्रिएशन से संबंधित तरह-तरह की गतिविधियां होती है। स्टूडेंट्स को प्रेक्टिकल नॉलेज के साथ ही बाजार में चल रहे फैशन से अपडेट किया जाता है। स्टूडेंट नए ट्रेंड पर आधारित कक्षा में तैयार किए गए परिधानों को फैशन-शो के माध्यम से लोगों को रूबरू कराया जाता है। फैशन डिजाइनिंग के स्टूडेंट एक साल में ही किड्स वेयर से लेकर एडल्ट वियर तक की ड्रेसेस की स्केचिंग डिजाइनिंग व स्टीचिंग करने लगे हैं। छात्र-छात्राओं द्वारा तैयार की गई ड्रेसेस का डेमो फैशन-शो के माध्यम से कर उनके कॉन्फिडेंस और पर्सनल ग्रूमिंग पर फोकस किया जाता है। इससे न केवल उनका आत्मविश्वास बढ़ता है बल्कि कुछ नया कर गुजरने की प्रवृति बढ़ी है।
स्टडी के साथ-साथ वर्कशॉप-फैशन शो जैसी एक्टीविटी
– ट्रेडिशनल कॉस्टयूम डिजाइनिंग वर्कशॉप
– रियूसिंग ओल्ड टैक्सटाइल्स फॉर न्यू क्रिएशन
– हेयर स्टाइलिंग वर्कशॉप
– लेटेस्ट फैशन डिजाइनिंग पर आधारित फैशन -शो
– अनुभवी व ख्यातनाम विषय विशेषज्ञों से वन-टू-वन
– डिजाइनिंग से जुड़े सेक्टर का मौका-मुआयना।
– ट्रेडिशनल वर्क से जुड़े अनुभवी कारीगरों के साथ कार्यस्थली पर अनुभव साझा करना।
– किड्स वेयर से लेकर एडल्ट वियर तक की ड्रेसेस की स्केचिंग डिजाइनिंग व स्टीचिंग ।
आट्र्स कॉलेज में डिप्लोमा कोर्सेस
1. डिप्लोमा इन फैशन डिजाइनिंग
2. डिप्लोमा इन टैक्सटाइल्स डिजाइनिंग
न्यूनतम शैक्षणित आर्हता : किसी भी संकाय में बारहवीं।
कौशल विकास आधारित कोर्सेस पर स्टडी फोकस हो
विश्वविद्यालय द्वारा संचालित डिप्लोमा इन फैशन डिजाइनिंग और डिप्लोमा इन टैक्सटाइल डिजाइनिंग की फीस अन्य संस्थानों के मुकाबले काफी कम है। इसके पीछे आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों के बच्चों को भी उच्च शिक्षा में कॅरिअर से जुड़े व्यावसायिक कोर्स करने का मौका देना है। आदिवासी बेल्ट होने से यहां जनजाति क्षेत्र से आने वाले बच्चों को न केवल हायर एजुकेशन से जोडऩा है बल्कि उनका कॅरिअर भी बनाना प्राथमिकता है। यहां प्रवेश लेने के बाद विद्यार्थी न केवल स्वरोजगार से जुड़े है, बल्कि वे दूसरों को भी रोजगार देने में सक्षम बने हैं। केंद्र एवं राज्य सरकार, राज्यपाल, कुलपति चाहते हैं कि आज के दौर में कौशल विकास आधारित कोर्सेस पर स्टडी फोकस हो। आज के प्रतिस्पर्धा के युग में स्वरोजगार से जोडऩे वाले पाठ्यक्रम विद्यार्थियों की जरूरत बन चुके हैं।
ये कहते हैं डिप्लोमा कर चुके स्टूडेंट्स
– डिप्लोमा स्टूडेंट शशि प्रजापत कहती हैं कि उन्होंने सत्यनाम लेडिज टेलर के नाम से अपनी शॉप शुरू की। सुविवि से डिप्लोमा करने के बाद नौकरी करने के बजाए स्वयं का काम शुरू करना बेहतर समझा। यहां दूसरों को भी रोजगार का मौका दिया जा सकता है।
-गायत्री त्रिवेदी कहती हैं कि प्रतिस्पर्धा के युग में नौकरी मिलना आसान नहीं रहा। ऐसे में अपनी रुचि के किसी ऐसे क्षेत्र में प्रशिक्षण लेकर काम शुरू किया जा सकता है। सुविवि में डिप्लोमा इन फैशन डिजाइनिंग के बाद स्वयं का काम शुरू किया।
-मुखर्जी चौक की शाइन कहती हैं कि स्वयं का काम करने का कोई मुकाबला नहीं है। कोर्स करने के बाद सिलाई और डिजाइनिंग की बारिकियों को सीखा है, उसका परिणाम यह है कि नौकरी मिले या न मिले स्वयं को इस मुकाम पर खड़ा करने की कोशिश की है कि आज स्वयं के स्तर पर आजीविका का साधन तैयार किया है।
–डॉ. डोली मोगरा–
(लेखिका मोसुविवि आट्र्स कॉलेज रेडिमेड गारमेंट विभाग में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं)