जोधपुर, 25 दिसम्बर। संत चन्द्रप्रभ महाराज ने कहा कि ओम् आध्यात्मिक लक्ष्य और ब्रह्मसाधना का बीजमंत्र है। यह पंचपरमेष्ठी का सार, ब्रह्मा, विष्णु और शंकर के आह्वान का द्योतक और अतीन्द्रिय ऊर्जा से जोडऩे वाला सेतु है। महर्षि पतंजलि ने ओम् को ईश्वर का वाचक माना है। ओम् वैज्ञानिक और आध्यात्मिक पद है। इसके उच्चारण से पैदा होने वाली तरंगें हमें अनेक प्रकार के शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक लाभ प्रदान करती हैं।
उन्होंने कहा कि ओमकार की साधना के तीन चरण हैं नाद, जाप और ध्यान। नाद में हम ओम्कार की ध्वनि पर अपनी मानसिक तरंगों को केन्द्रित करते हुए लम्बे स्वर में उच्चारण करते हैं। जाप में हम लम्बी गहरी साँसें खींचते हुए, हर साँस के साथ ओम् का सुमिरन करते हैं। ध्यान में हम ओमकार की ज्योति को ललाट प्रदेश पर साकार कर उसमें लीन होते हैं। उन्होंने कहा कि प्रभातकाल में सूर्योदय के समय ओमकार का नाद, जाप और ध्यान हमारे शरीर, मन और प्राण तीनों के लिए टॉनिक का काम करते हैं। आप लगातार 21 दिन तक हर रोज सुबह लगभग 21 मिनट तक इसका प्रयोग करके देखें, आपको एक अद्भुत शांति, आनंद, आरोग्य और दिव्यता का अनुभव होगा। संत चन्द्रप्रभ शनिवार को कायलाना रोड स्थित संबोधि धाम में संबोधि साधना शिविर के पहले दिन देशभर से आए साधकों को प्रवचन दे रहे थे।
शरीर के विषैले तत्वों को निकालता है ओम
संत चंद्रप्रभ ने कहा कि ओम् शरीर के विषैले तत्वों को दूर करता है। तनाव के कारण पैदा होने वाले द्रव्यों पर इससे नियंत्रण होता है। ओम् का उच्चारण करने से शरीर तनाव-रहित हो जाता है। यह हृदय और खून के प्रवाह को संतुलित रखता है। बीपी चाहे अधिक रहती हो या कम, ओम् के उच्ड्ढचारण से हमारे ब्लड प्रेशर में एक सहज संतुलन आने लगता है।
ईश्वरीय एकाकार होने में खास भूमिका निभाता है ओम
उन्होंने कहा कि ओम अपनी उच्च अवस्था में हमें ईश्वरीय चेतना के साथ एकलय और एकाकार होने में अपनी खास भूमिका अदा करता है। योगी लोग ओम्कार का ध्यान करते हुए सांसारिक सुखों के साथ मोक्ष-सुख को भी प्राप्त करते हैं। इस दौरान संत ने ओमकार ध्यान का अभ्यास करवाया। रविवार को सुबह 6.30 बजे योग ध्यान और 10 बजे प्रवचन होगा।