-डॉ. अशोक आर्य-
1992 में नवलखा महल का अधिग्रहण हुआ और पूज्य स्वामी तत्त्वबोध जी सरस्वती इसके संस्थापक अध्यक्ष बने। मेरा सौभाग्य रहा कि 1994 में मैं यहां राजकीय सेवा में स्थानान्तरित होकर आया और आने के बाद से ही स्वामी जी के आग्रह से यहाँ से जुड़ा। उस समय भवन की जो स्थिति थी वह अत्यन्त जर्जर थी और गतिविधियाँ प्रायः शून्य थी। परन्तु स्वामी जी के तेजस्वी और कर्मठ व्यक्तित्व के चलते परिस्थितियां बदलनी ही थीं और ऐसा ही हुआ। पूज्य स्वामी जी ने तो तन-मन-धन सर्वथा, सर्वतोभावेन अपने आपको न्यास के समर्पित कर दिया था। यहाँ तक कि उन्होंने सब कुछ छोड़ कर संन्यास ले कर यहीं पर एक छोटा सा कुटीर बनाकर उसमें रहना प्रारम्भ कर दिया। उस काल में न्यास में जो भी गतिविधियां की गईं उनके निर्माण और क्रियान्वयन का कार्य प्रायः हमारे और साथियों के ऊपर रहता था परन्तु इसका जो वित्तीय पक्ष था उसकी हमें तनिक भी चिन्ता न रहती थी क्योंकि स्वामी जी स्वयं सदैव अर्थ सम्बल बनके खडे़ रहते थे, उनकी तपस्या की कहानी आज एक इतिहास बन गई है जो हमें प्रेरणा देती रहती है।
प्रायः देखा जाता है कि लोग घोषणाएं तो कर देते हैं पर उन पर अमल कितना हुआ इस पर ध्यान नहीं दिया जाता, परन्तु यह स्वामी जी की ही प्रेरणा थी और हमारा भी स्वभाव था कि उतना ही कहा जाए जितना किया जा सके। इसी को केन्द्र में रखते हुए धीरे-धीरे न्यास की प्रगति होने लगी और अनेक क्षेत्रों में न्यास ने कार्य किया जिनका विशद् उल्लेख इस संक्षिप्त आलेख में सम्भव नहीं।
हमारा विचार है कि अगर वैदिक सन्देश लोगों तक पहुंचाना है तो इसके दो ही साधन हैं या तो उन्हें अपने तक बुलाओ अथवा स्वयं उनके पास पहुँच जाओ। सत्यार्थ प्रकाश के प्रत्येक समुल्लास पर निबन्ध प्रतियोगिता की सफलता के पश्चात न्यास ने निर्णय लिया कि विद्यालयों के विद्यार्थियों को सत्यार्थ प्रकाश की शिक्षाओं से अवगत कराने हेतु 1 वर्ष में 100000 विद्यार्थियों की परीक्षा ली जाए। इसके लिए पढ़ने हेतु उनको बाल सत्यार्थ प्रकाश दिया जाए।
उक्त प्रतियोगिता में हमने दूसरा प्रकार अपनाया और न्यास का वेद प्रचार रथ गांव-गांव घूमता रहा। इसके पीछे हमारा यह भी विचार था कि जिन बच्चों को यह पाठ्य सामग्री दी जा रही है, बाल सत्यार्थ प्रकाश दिया जा रहा है उन्हें परीक्षा की दृष्टि से, क्योंकि प्रश्न पत्र ऐसा बनाया गया था कि जब तक पूरी पुस्तक न पढ़ें तब तक अच्छे नम्बर नहीं आ सकते थे, अतः बच्चों को बाल सत्यार्थ प्रकाश पूरा पढ़ना ही होगा और अच्छे नम्बर आएं इस भावना से अभिभावक भी पढ़ेंगे, कुल मिलाकर के अनुमानित एक पुस्तक को चार लोग पढ़ेंगे ऐसा हमारा विचार था लगभग 60000 पुस्तकें भेजी गई और इस प्रकार से सत्यार्थ प्रकाश का सन्देश 200000 से ढाई लाख लोगों तक पहुंचा।
उक्त योजना में आर्य पृष्ठभूमि के विद्यालयों का समुचित सहयोग नहीं रहा, जिनके बारे में हमारा पूर्ण विश्वास था कि ये संस्थान बढ़-चढ़कर साथ देंगे, इसी कारण से हमारा संकल्प पूरा नहीं हुआ। पर, यह अवश्य है कि 40000 बच्चे इस योजना से जुड़े जिनमें 80 प्रतिशत ग्रामीण क्षेत्र के सरकारी विद्यालयों के विद्यार्थी ही थे। बच्चों ने जो उत्तर दिए और बाल सत्यार्थ प्रकाश के बारे में जो अपने विचार लिखे वे सकारात्मक ऊर्जा से भर देने वाले थे। हम वर्षों तक अवकाश मिलने पर उन्हें पढ़कर अपने संकल्प को दृढ़ीभूत करते रहे।
सत्यार्थ सौरभ पत्रिका की बात करें तो वर्ष 2011 के सत्यार्थ प्रकाश महोत्सव के अवसर पर अक्टूबर में हमने घोषणा की थी कि न्यास की मासिक पत्रिका निकलेगी और कष्टदायी रजिस्ट्रेशन आदि की प्रक्रिया से गुजर कर, जनवरी 2012 में प्रथम अंक प्रकाशित हुआ। तब से अब तक परमपिता परमात्मा की कृपा से यह पत्रिका न केवल निरन्तर निकल रही है बल्कि आपके आशीर्वाद से आर्य जगत में अपना विशिष्ट स्थान बना चुकी है। आर्य समाज के बाहर के भी अनेकानेक लोग जो इसके पाठक बने, उन्होंने भी इसकी भूरि-भूरि प्रशंसा की है। आर्थिक रूप से पत्रिका को संबल देने में जहां न्यास के ट्रस्टी बन्धुओं का अतीव योगदान है, वहीं विज्ञापन के रूप में प्रारम्भ से लेकर के अद्यतन निरन्तर अर्थ सहयोग देने में माननीय बाबू दीनदयाल जी एवं न्यास के पूर्व अध्यक्ष (स्मृति शेष) महाशय धर्मपाल जी का बहुत बड़ा योगदान रहा है। आगे के लिए भी अत्यन्त श्रमसाध्य और समय साध्य होने के बावजूद अत्यल्प साधनों से ही हम ‘सत्यार्थ सौरभ’ निरन्तर निकालेंगे ऐसा संकल्प है। 11000 रुपये देकर अपना संरक्षत्व प्रदान करने वाले उदारमनाओं का स्वागत है।
अब हम आर्यावर्त्त चित्रदीर्घा की बात करें तो अत्यन्त प्रसन्नता के साथ कह सकते हैं कि आर्यसमाजेतर लोगों में अपने विचार संप्रेषण का अत्यन्त ही उपयोगी साधन हमने इसे पाया। यद्यपि अगर हम मार्केटिंग पर व्यय करने में अर्थात एक व्यक्ति इसी के निमित्त रखने में सक्षम होते तो संख्यात्मक रूप से जो अभी लगभग 30000 लोग प्रतिवर्ष इसे देखने आते हैं (कोरोना काल को छोड़कर) वह बढ़कर एक लाख से ऊपर हो जाते इसमें कोई सन्देह नहीं। विशेष बात यह है कि इन 30000 लोगों में 95 प्रतिशत लोग ऐसे होते थे जिन्होंने इससे पूर्व वैदिक विचारों को, वैदिक मान्यताओं को विशेष सुना समझा नहीं हुआ था परन्तु उसके बावजूद दीर्घा दर्शन के पश्चात वे जो भाव लेकर जाते थे और उनमें से कतिपय लोग पंजिका पर जो लिख कर जाते थे उसे पढ़कर मन मयूर झूम उठता था और धीरे-धीरे हमें निश्चय हो गया कि आर्यसमाजेतर लोगों को बुलाकर और ऐसे ही प्रकल्पों का निर्माण कर उन्हें गम्भीर वैदिक विचारों से संपृक्त किया जा सकता है।
मेरी इस बात को कृपया अन्यथा न लें कि अनेक स्थलों पर करोड़ों रुपये लगाकर अनेकों कमरे इत्यादि बनाए गए परन्तु उनका उपयोग वर्ष में कितने दिन हो पाता है, यह विचार करने से अपने आप स्पष्ट हो जाएगा, परन्तु अगर कोरोना काल की बात छोड़ दें तो सत्यार्थ प्रकाश भवन वह स्थल है जहां पर जैसा हमने पूर्व में कहा कि 30000 लोग जो कि गैर आर्य समाजी हैं, यहां से आर्य समाज की विचारधारा लेकर जाते हैं और यही कारण है लाखों रुपए का साहित्य प्रतिवर्ष, विशेष रूप से सत्यार्थ प्रकाश यहां से विक्रय हो पाता है। इस सबने यह विचार उत्पन्न किया कि काश ऐसे ही कुछ प्रकल्प और तैयार अगर इस ऋषि भूमि पर हो जाए तो 30 सहस्र की संख्या लाखों में निश्चित रूप से पहुंच जाएगी।
प्रकल्प मस्तिष्क में थे, परन्तु एक तो स्थान का अभाव था, दूसरे अर्थ का अभाव था। स्थान के सन्दर्भ में तो कुछ विशेष किया जा सकता नहीं था। अतः विचार आया जो खुला हुआ चौक है अगर उसको एक डोम से आच्छादित कर दिया जाए तो उसके नीचे एक प्रकल्प तैयार हो सकता है। प्रभु कृपा से इसकी प्राथमिक तैयारी के लिए उदयपुर के विधायक और पूर्व गृहमंत्री गुलाब चन्द जी कटारिया ने 10.50 लाख रुपये की राशि डोम बनाने के लिए दी। इससे डोम का बेसिक स्ट्रक्चर तैयार हो गया। इसके लिए उन्हें जितना धन्यवाद दिया जाए कम है। परन्तु जिस तरह की साज सज्जा हमारे मन में थी, जिससे दर्शकों पर एक सकारात्मक प्रभाव पड़े उसके लिए अधिक धनराशि की आवश्यकता थी। महर्षि की अमर कृति संस्कार विधि का अपेक्षाकृत कम प्रचार हुआ है, जबकि मानव के चरित्र और व्यक्तित्व के निर्माण में उसका महत्त्व असंदिग्ध है। अतः इन प्रकल्पों में, 16 संस्कारों को अत्यन्त सुन्दर झांकियों के साथ संस्कार वीथिका में प्रदर्शन के साथ-साथ ही एक थियेटर वह भी ऐसी क्वालिटी का जैसे कि सिनेमाघर होते हैं बनाने की इच्छा थी जिसमें कि सत्यार्थ प्रकाश की शिक्षाओं पर शानदार फिल्में बनाकर दिखा सकें और उदयपुर के आसपास के 150-200 विद्यालयों को जोड़कर प्रेरणा देकर लाखों विद्यार्थियों को वैदिक सन्देश दे सकें। इस सब के लिए प्रचुर धन की आवश्यकता थी जिसके लिए हमें हरी झंडी आर्य जगत की विख्यात विभूति और इस ट्रस्ट के प्राण बाबू दीनदयाल जी और हमारे अग्रज तुल्य सुरेश चन्द्र जी आर्य ने प्रदान कर दी। 40 लाख रुपये का सात्विक दान इन दोनों देव पुरुषों द्वारा दिया गया।
कोरोना काल, लॉकडाउन, गुलाब बाग की प्रशासनिक व्यवस्थाओं की अड़चन, नाना प्रकार के व्यवधान आने से अत्यन्त चिन्ता थी कि यह कार्य कब पूर्ण होगा। परन्तु प्रभु की कृपा से और न्यास के सभी स्थानीय न्यासी बन्धुओं व आर्य कार्यकर्त्ताओं के सहयोग से और स्मार्ट सिटी उदयपुर के अधिकारियों और नगर निगम उदयपुर के माननीय महापौर गोविन्द सिंह जी टांक और उपमहापौर पारस जी सिंघवी व अन्य नागरिकों की सहायता से और विशेष रूप से उक्त दोनों महानुभावों की कृपा से हमारा संकल्प पूर्ण होकर आज आपके समक्ष उपस्थित है। यह सुरेश चन्द्र दीनदयाल आर्य चलचित्रालय और दीनदयाल सुरेश चन्द्र आर्य संस्कार वीथिका परिसर कितने आकर्षक हैं और कितने प्रेरक हो सकते हैं इसका निर्णय तो आप सुधिजन करेंगे, हम तो यही कहेंगे कि हम लोगों ने अपना 100 प्रतिशत इसमें देने का प्रयत्न किया है। चलचित्रालय में दिखाने हेतु सत्यार्थ प्रकाश की शिक्षाओं पर आधारित प्रथम फिल्म के बारे में एक स्थानीय फिल्म निर्देशक से बात चल रही थी, उनको पूरा प्लॉट बहुत ही उत्तम लगा था। परन्तु दुःख की बात है कि कोरोना ने उनके जीवन को लील लिया। अभी के लिए वर्तमान में उपलब्ध साधनों से सहाय्य लेकर बच्चों में राष्ट्रीयता का भाव भर सकें, वैदिक शिक्षाओं का सार उनके समक्ष प्रस्तुत करें, इस प्रकार की 6 अथवा 7 लघु फिल्में हमने एकत्रित कर ली हैं। न्यास द्वारा निर्मित दयानन्द दर्शन तो है ही जिसकी भी भूरि-भूरि प्रशंसा सहस्रों लोगों ने भूतकाल में की है।
जिस प्रकार न्यास की ‘आर्यावर्त्त चित्रदीर्घा’ विश्व प्रसिद्ध हो इस योग्य बनी है कि यहां के चित्रों का प्रदर्शन सैकड़ों आर्य समाजों में वर्तमान में किया जा रहा है। आर्यसमाज हापुड़ ने तो हूबहू गैलेरी बनाई है। उसी प्रकार हमें पूर्ण आशा है कि प्रभु कृपा से और आप सभी आत्मीय बन्धुओं के आशीर्वाद से थिएटर और संस्कार वीथिका विश्व भर के मानवों को वैदिक सन्देश प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायेगी।
हम जैसे ही वीथिका परिसर में प्रवेश करेंगे सामने ही ऊपर महर्षि दयानन्द जी महाराज की भव्य प्रतिमा के दर्शन होंगे जो महर्षि जी के व्यक्तित्व और कृतित्व को समझने की ओर दर्शकों को प्रेरित करेगी और चित्रदीर्घा और थिएटर सहायक होंगे महर्षि जी का राष्ट्र की प्रगति में अवदान रेखांकित करने में।
जैसा हमने पूर्व में कहा- महर्षि दयानन्द जी महाराज की संस्कार विधि मानव जीवन के निर्माण की कुंजी है परन्तु इसका प्रचार अपेक्षाकृत कम रहा है। आर्य परिवारों में भी 1-2 संस्कार होकर रह जाते हैं। कुछ संस्कार तो पूर्णतः उपेक्षित रहते हैं, जबकि उनका महत्व अन्य से कम नहीं बल्कि गुरुतर है। आर्यसमाजेतर लोग तो प्रायः संस्कारों के नाम तक नहीं जानते। ऐसे में यह संस्कार वीथिका उनका मार्गदर्शन करने में सक्षम होगी, ऐसा विश्वास है। गर्भाधान से लेकर अन्त्येष्टि पर्यंत 16 संस्कार लाइफसाइज स्टेचू, 3डी पेंटिंग, प्रकाश का भव्य संयोजन और सारगर्भित वर्णन के साथ 20 मिनट का ऐसा भव्य शो प्रस्तुत करेंगी कि हमें विश्वास है कि लाखों लोग प्रतिवर्ष इसका लाभ उठा सकेंगे। यह सत्यार्थप्रकाश भवन वैदिक संस्कृति प्रचार केन्द्र के रूप में एक सशक्त संस्थान बनके उभरे यही प्रभु से प्रार्थना है।
अब बात संस्कारों की, भव्य झांकियों के निर्माण की। देश के विभिन्न भागों में कार्य कर रहे अनेक शिल्पकारों से चर्चा करने के उपरान्त दिल्ली के एक प्रसिद्ध बंगाली मूल के चित्रकार, शिल्पकार और म्यूरल कार्य के विशेषज्ञ श्री गौर मोहन, अब संस्कारों के निर्माण और महर्षि दयानन्द की प्रतिमा के निर्माण का कार्य कर रहे हैं। इन पंक्तियों के लिखे जाने तक कार्य प्रारम्भ हो चुका है। उन्होंने 2 माह में कार्य पूर्ण करने का आश्वासन दिया है।
संस्कारों के निर्माण तथा आनुषांगिक खर्चों को मिलाकर लगभग 5000000 रुपये का व्यय आएगा। इसके लिए न्यास ने जो नीति बनाई है वह यह है कि एक संस्कार के निर्माण के लिए जो दानदाता 300000 लाख का दान प्रदान करेंगे उनकी ओर से एक संस्कार प्रायोजित होगा। इसके अतिरिक्त न्यूनतम 51000 रुपये देने वाले भी कुछ दानदाता होंगे तो ऐसे छह दानदाताओं को मिलाकर एक संस्कार प्रायोजित हो सकेगा। यद्यपि इस महनीय प्रोजेक्ट की शब्दों द्वारा जो रूपरेखा बताई जा सकती थी वह यथाशक्ति हमारे द्वारा प्रस्तुत किए जाने पर भी इसकी भव्यता की झलक मात्र ही आपको मिल सकी होगी, ऐसा हम जानते हैं पर फिर भी न्यास के पूर्व कार्यों और संकल्प शक्ति पर विश्वास करते हुए आप सभी इस पवित्र कार्य में रुचि लेंगे और अपनी उदारता से न्यास को सराबोर करेंगे ऐसा हमें विश्वास है।
स्मार्ट सिटी से निखरा भी और प्राचीन चित्रांकन भी उभर आए
बन्धुओं इस स्थल पर ऋषि ने सत्यार्थ प्रकाश जैसे कालजयी ग्रन्थ का प्रणयन सम्पूर्ण किया था। तो क्यों ना अत्याधुनिक नए-नए प्रकल्पों के माध्यम से उस महान ग्रन्थ की शिक्षाओं को यहां से प्रचारित किया जाए, प्रसारित किया जाए, यह सोचकर इस न्यास ने न केवल योजनाओं का निर्माण किया वरन इसके न्यासी बन्धुओं ने अर्थ प्रदान कर उन योजनाओं को साकार भी किया। जो थोड़ी बहुत कमी शेष रह गई है, उसके लिए आपसे अत्यधिक अपेक्षाएं हैं। क्या ही सुन्दर होगा कि आपकी उदार भावनाओं से निःसृत पवित्र धनराशि से आपका तथा जिन आत्मीयजन की स्मृति में आप यह दान प्रदान करेंगे उनका नाम सदैव के लिए यहां अंकित हो यहां दर्शनार्थ आने वाले लाखों व्यक्तियों के समक्ष यह घोषित करता रहे कि वैदिक विचारों के प्रसारण में आपका योगदान किसी से कम नहीं है।
अब यहीं पर मैं कृष्णावत बन्धुओं का हार्दिक आभार प्रकाशित करना चाहूंगा जिन्होंने कि न्यास की अतिथिशाला के नवीनीकरण का जिम्मा अपने ऊपर लिया है। आपके पूज्य पिताजी घनश्याम सिंह जी कृष्णावत विधिवत आर्य समाजी तो नहीं थे परन्तु सुधार के कार्यक्रमों में, शिक्षा की उन्नत पद्धति में उनका सदैव विश्वास रहा और उन्होंने अपने जीवन को इसी प्रकार जिया। उनके सुपुत्र द्वय कुंवर वीरम देव सिंह जी व यदुराज सिंह जी ने न्यास के निवेदन पर अतिथिशाला का निरीक्षण कर, अत्यन्त जर्जर हो चुके कमरों के पुनर्निर्माण व नवीनीकरण की जिम्मेदारी अपने कन्धों पर ली है। अतिशीघ्र यह कार्य भी पूर्ण हो जाएगा।
सौन्दर्य तथा आकर्षक से युक्त चीजें व्यक्ति को स्वभावतः प्रभावित करती हैं। अतः किसी भी स्मारक का बाहरी स्वरूप मनमोहक है तो पर्यटक उसमें रुचि दिखाता है, प्रवेश करने का मानस बनाता है यह बात निर्विवाद है। और जब वह परिसर में आता है तब नूतन विधाओं के माध्यम से संस्था का सन्देश देना, उसे प्रेरित करता है। पर्यटकों के इस मानव स्वभाव का वर्षों तक अनुभव करने के पश्चात सत्यार्थ प्रकाश भवन, नवलखा महल, उदयपुर का विकास, नवीनीकरण, इसी आधार पर किया जा रहा है।
आर्यावर्त्त चित्रदीर्घा, थ्रीडी थियेटर तथा संस्कार वीथिका वे प्रमुख प्रकल्प हैं जो दर्शकों की अभिरुचि के अनुसार निर्मित हो चुके हैं। यह प्रकल्प कुल मिलाकर एक घंटे का मंत्रमुग्ध कर देने वाला चित्रण दर्शकों के समक्ष करने में समर्थ होंगे।
महल के बाहरी स्वरूप की अवधारणा
नवलखा महल की बाहरी दीवार को अत्यन्त सुन्दर, चित्ताकर्षक और थीम वेस्ड बनाने का विचार है। थीम होगा वेद। र्वामान में नवलखा महल के 5 दरवाजे हैं। चार सदैव बन्द रहते हैं। दूसरे शब्दों में कहा जाय तो अनुपयुक्त हैं। इन चारों के स्थान पर पत्थर या अन्य किसी उपयुक्त पदार्थ का उपयोग कर चारों ऋषियों जिन पर सृष्टि की आदि में वेदज्ञान का आविर्भाव हुआ था उनकी छवि मुराल वर्क, पत्थर शिल्प अथवा अन्य मनोहारी विधा में (थ्रीडी में) उकेरित करवाया जायेगा। इसके साथ लगी सम्पूर्ण दीवार में यथास्थल पत्थर के नक्काशीदार खम्बे होंगे। इनके मध्य की दीवार पर वेद मन्त्रों के सत्य अभिप्राय को उत्कीर्ण करते हुए थ्रीडी में चित्रित किया जायगा। उदाहरण के तौर पर- ‘द्वासुपर्णा सयुजा सखाया…’ को दर्शाने हेतु एक वृक्ष का निर्माण हो, जिस पर दो पक्षी बैठे हों, एक फल खा रहा हो तथा दूसरा केवल देख रहा हो, मात्र दो पंक्तियों में त्रैतवाद के सिद्धान्त को दर्शा दिया जाय। वेद में अनेक मन्त्र प्रहेलिकात्मक हैं। उनमें से कुछ का चयन कर उनके रहस्य को इसी प्रकार खोला जाय। इसी प्रकार तिब्बत में आदि सृष्टि के तथ्य को और वहां चार ऋषियों के आत्मा में वेदज्ञान के प्रादुर्भाव की सच्चाई को दर्शाते हुए उससे वेदांगों और अन्य आर्ष साहित्य के निगमन को निरूपित किया जाय, यह सम्पूर्ण थीम थ्रीडी में हो, प्रकाश का संयोजन अद्भुत हो तो दर्शक हटात रुककर उत्कण्ठा लिये परिसर प्रवेश हेतु बाध्य होंगे,ऐसा विश्वास है। यह अभी केवल विचार है। उपयुक्त विद्याधिकारियों से चर्चा कर इसे अन्तिम रूप दिया जाएगा। यह जहां नवलखा के बाह्य स्वरूप को भव्य व मनोहारी बनाएगा वहीं वैदिक संस्कृति के मूल तत्वों को उकेरित करेगा।
स्वागत कक्ष तथा विक्रय केन्द्र
वर्त्तमान में भवन में कोई सुव्यवस्थित स्वागत कक्ष नहीं है तथा विक्रय केन्द्र भी पुराने ढंग का है। इसे अत्यन्त आकर्षक रूप देने का विचार है। महल के मुख्य दरवाजे से अन्दर घुसते ही दाहिनी ओर नक्काशीदार दीवार बनायी जायेगी जिसके आगे प्रकाश व्यवस्था की समुचित व आदर्श व्यवस्था के साथ आधुनिक एयरपोर्ट के पुस्तक केन्द्रों की तर्ज पर विक्रय केन्द्र विकसित किया जाएगा। इसके समक्ष ही अर्थात प्रवेश द्वार के बायीं ओर स्वागत कक्ष जिसमें सोफा, सेन्टर टेबल आदि होंगी, बनाया जाएगा। जहां दर्शक न सिर्फ बैठकर प्रतीक्षा कर सकेंगे वरन इस समय में सामने लगी एलईडी पर न्यास की, इसके न्यासियों की, इसके दानदाताओं की, इसकी व्यवस्था तथा उद्देश्यों की तथा आर्यसमाज के नियमों तथा सिद्धान्तों से सम्बन्धित व्यवस्थित तथा उपयोगी सामग्री देख सकेंगे।
भारत गौरव दर्शन
हमने अनेक बार अत्यन्त पीड़ा से अनुभव किया है कि आज की पीढ़ी वास्तविक राष्ट्र निर्माताओं के बारे में पूर्णतः अनभिज्ञ है। दोष उनका नहीं। उन्हें कभी बताया या पढ़ाया ही नहीं गया। स्वतंत्रता सेनानियों के सम्बन्ध में भी चंद नामों के अतिरिक्त वे सहस्रों नाम अज्ञात हैं जिन्होंने अपनी किशोरावस्था में ही अपने जीवन को राष्ट्र की बलिवेदी पर न्योछावर कर दिया। आज हम स्वतंत्र हवा में श्वांस ले रहे हैं तो उसका श्रेय उन गुमनाम शहीदों और महापुरुषों को जाता है। हम चाहते हैं कि प्रत्येक दिन कम से कम उस दिन से सम्बन्धित एक महानात्मा का दिग्दर्शन चित्र, व्यक्तित्व व कृतित्व सहित कराया जाय। यह कार्य एक विशाल एलईडी के माध्यम से करने का विचार है। प्रत्येक बदलती दिनांक के साथ एक नया नाम दर्शकों के मध्य आएगा और वे उस महान् विभूति का परिचय प्राप्त कर सकेंगे। इसी प्रकल्प को हमने भारत-गौरव-दर्शन के नाम से सम्बोधित किया है। और इसे अपना पावन कर्तव्य समझा है अतः श्रमसाध्य होते हुए भी इस संकलन में लगे हैं।
इस नवीनीकरण हेतु जो विचार मन में हैं, उनके मूर्त्तरूप ले लेने के पश्चात् ऐसा मानना अनुचित न होगा कि जो भी एक बार नवलखा के सामने से गुजरेगा, वह हटात इसके अन्दर आने को बाध्य हो जाएगा।
परन्तु जैसा कि सभी जानते हैं धन के बिना कुछ हो नहीं सकता, इसके लिए भी प्रचुर धन की आवश्यकता होगी। परन्तु यह निश्चय है कि कल्पना जब भी हकीकत बनेगी, नयनाभिराम होगी, अद्वितीय होगी। आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है कि पूर्व की भांति आप सभी के सहयोग से और परमात्मा की कृपा से शीघ्र ही यह योजना भी निश्चित पूर्ण होगी और तब यह भव्य भवन और भी प्रेरक हो करके जगमगाएगा ऐसा निश्चय है। बस यही है कि आप न्यास की पूर्व प्रगति को देखकर यह विश्वास रखें कि प्रस्तुत योजना भी और सुन्दर स्वरूप में आकार लेगी, अतः इस निमित्त अपनी दानशीलता और उदार भावों की वर्षा करते हुए श्रद्धा व सामर्थ्य के अनुसार अर्थ सहयोग अवश्य प्रदान करें। आपका यह सहयोग धारा 80जी के अन्तर्गत करमुक्त है।
महर्षि का स्टेच्यू
देश, काल के अनुसार सिद्धान्तों में तनिक भी समझौता किए बिना विविध विधाओं के द्वारा अधिकाधिक जनों को आकर्षित कर उन्हें प्रेरणा दी जाय, यह न्यास का विचार है। अतः ‘मूर्तिपूजा’ की स्थिति के लिए लेशमात्र भी अवकाश न हो, इसे सुनिश्चित करते हुए 7 फीट ऊंचा महर्षिवर देव दयानन्द का भव्य स्टेच्यू बनवाया जा रहा है, जो भीतरी चौक में अवस्थित ‘संस्कार वीथिका’ में प्रवेश करते ही, महर्षि दयानन्द के व्यक्तित्व व कृतित्व के सन्दर्भ में, दर्शकों में श्रद्धाभाव का संचरण करेगा।
विद्यार्थियों को लाने हेतु बस की व्यवस्था
अन्त में निवेदन करना चाहूंगा कि आर्यावर्त्त चित्रदीर्घा और नवनिर्मित सुरेशचन्द्र दीनदयाल आर्य चलचित्रालय में दिखायी जाने वाली लघु फिल्में व दीनदयाल सुरेशचन्द्र आर्य संस्कार वीथिका परिसर में स्थित वैदिक संस्कार केन्द्र, भारत के भावी नागरिकों को अधिकाधिक प्रेरणा दे सकें, इस हेतु अत्यन्त आवश्यक व अपरिहार्य है कि उदयपुर नगर और आसपास के क्षेत्र के विद्यालयों के जो लाखों विद्यार्थी हैं उनको हम इन योजनाओं से जोड़ें। इस हेतु विगत चार-पांच वर्षों से अनथक प्रयत्न करने पर यह सामने आया है कि अधिकांश विद्यालयों के पास अपने निज के साधन नहीं है, अतः वे चाहते हैं कि अगर उन्हें एक बस बच्चों के लाने ले जाने के लिए उपलब्ध करा दी जाए तो वह बच्चों को यहां भेजकर प्रसन्न ही होंगे।
तो इन प्रयासों से विद्यार्थियों को जोड़ने के लिए बस की अनिवार्यता प्रकट हुई। परन्तु पुनः इसके लिए भी अर्थ चाहिए। परन्तु यह समझते हुए कि प्रतिदिन 200 विद्यार्थियों की उपस्थिति इस बस के होने पर होना सुनिश्चित हो जाएगी और इस प्रकार 365 दिनों में लगभग 75000 से भी अधिक विद्यार्थी वैदिक सन्देश ग्रहण कर सकेंगे, इस दिशा में प्रयास अवश्य करने चाहिए।
हमें आशा है कि ऐसे दानदाताओं का अभाव नहीं होगा जो न्यास को एक बस उपलब्ध करा सकेंगे, केवल बात आवश्यकता को, उपयोगिता को समझने मात्र की है और मुझे विश्वास है कि न्यास की गतिविधियों से परिचित होने के पश्चात् यह देखते हुए कि न्यास द्वारा जो भी जब कहा गया वह पूरा हुआ, उस प्रकल्प का पूरा उपयोग भी हो रहा है, उसी प्रकार अब भी जैसा संकल्प लिया गया उसके अनुसार आर्यावर्त्त चित्रदीर्घा, चलचित्रालय व संस्कार वीथिका अपने भव्यरूप में उपलब्ध हैं, उनका लाभ लेने के लिए (इस अनुदान का उपयोग व सार्थकता स्पष्ट होने पर) आर्य दानी महानुभाव सहयोग के लिए समुत्सुक होंगे ऐसा विश्वास है।
महर्षि दयानन्द शयन कक्ष
जिस कक्ष में बैठकर महर्षि जी सत्यार्थ प्रकाश लिखवाते थे, उस कक्ष में अब अत्यन्त सुन्दर 14 कोणीय तथा 14 मंजिला कांच का बना घूमता हुआ सत्यार्थ प्रकाश स्तम्भ सुशोभित हो सत्यार्थप्रकाश की 112 शिक्षाओं का प्रकाश कर रहा है। परन्तु महर्षि दयानन्द का शयन कक्ष अभी दर्शकों को अलभ्य है।
बहुत से बन्धु देखना चाहते हैं, परन्तु उस तक जाने का रास्ता या तो लाइब्रेरी में हो करके जाता है या फिर अति अनगढ़ कमरों में से होकर जाता है अतः शोभायमान नहीं लगता। लाइब्रेरी को थोड़ा सुव्यवस्थित और सुन्दर बना दिया जाए तो उधर से यह व्यवस्था हो सकती है। महर्षि जी के शयनकक्ष को भी व्यवस्थित करने की महती आवश्यकता है। इस सब में अनुमानित 500000 रुपये का व्यय है, आप लोगों की अनुकम्पा होने पर यह आवश्यक कार्य भी हो सकेगा।
कतिपय बातें जो अभी मन में हैं उन पर यह सोचकर विराम दे रहा हूं कि आप सभी उदारमनाओं को यह ना लगने लगे कि यह तो योजनाओं का अम्बार है और याचिकाओं की कोई कमी ही नहीं है। इसलिए अपनी बात को विराम देते हुए पुनः एक बार माननीय दीनदयाल जी आर्य और सुरेश चन्द्र जी आर्य के चरणों में धन्यवाद के पुष्प अर्पित करता हूं और अन्य सभी न्यासी बन्धुओं से निवेदन करता हूं कि आप स्वयं अथवा अपने प्रयासों से शेष बची योजनाओं को मूर्त्तरूप देने में अपना सहयोग प्रदान करें। एक बार पुनः धन्यवाद।
स्वस्थ रहें – सुरक्षित रहें