वेलकम 2 उदयपुर.
झीलों के शहर उदयपुर को छोटा कश्मीर, राजस्थान का कश्मीर, पूरब का वेनिस यूं ही नहीं कहा जाता। अरावली की उपत्यकाओं में बसा उदयपुर हर मौसम में नए रंग लिए होता है। बारिश और सर्दी के मौसम को तो लुभावना माना ही जाता है, लेकिन गर्मी में उदयपुर की पहाडिय़ों पर खिलने वाला पलाश भी उदयपुर के नैसर्गिक सौन्दर्य में चार-चांद लगाता है। कुल मिलाकर उदयपुर आखिर उदयपुर है और पूरी दुनिया के लिए प्यारा शहर है।
इसी उदयपुर में जब आसमान से पानी बरसता है तो प्रकृति खिलखिला उठती है, पहाड़ों से पानी बहकर झरनों के रूप में नजर आने लगता है, बूंदों की छमछम और बहते पानी की कल-कल करती आवाज मन को आह्लादित कर देती है। जिस दिशा में जाओ उसी दिशा में हरीतिमा के चटख रंग देखने वालों की आंखों में चमक भर देते हैं।
प्राचीन महादेव मंदिर के कारण प्रसिद्ध है यह स्थान
ऐसा ही एक स्थान है नांदेश्वर जहां प्राचीन नांदेश्वर महादेव का मंदिर है और यहां पास ही में तालाब भी है। इस मंदिर में कुण्ड है जो कभी खाली नहीं होता। पास ही स्थित नांदेश्वर तालाब जो बारिश के दौरान पहाडिय़ों से आने वाले पानी को समेटकर उदयपुर शहर की पिछोला झील की तरफ बढ़ता है। नांदेश्वर से निकली पानी की यह धारा आगे जाकर सीसारमा नदी बन जाती है। जब पानी का बहाव कम होता है तो उदयपुर शहर के लोग परिवार सहित इस पानी में अठखेलियां करते नजर आते हैं। यही कारण है कि इस जगह को मानसून का ‘नेचुरल वाटर पार्क’ कहा जाता है जो पूरी तरह नि:शुल्क होता है।
ग्रामीणों के लिए भी महत्वपूर्ण होता है चौमासा
जब नेचुरल वाटर पार्क मानसून में अपने रूप में आता है तो आसपास की ग्रामीण संस्कृति का आर्थिक आधार भी परवान चढ़ता है। खेतों से आने वाले भुट्टों के सिकने की महक, गर्मागर्म पकोडिय़ों की खुशबू आदि पकवानों की स्टालों के जरिये चौमासा ग्रामीणों की झोली में भी उल्लास भर जाता है।
उदयपुर शहर के पश्चिमी छोर से 9 किलोमीटर दूर
यह जगह उदयपुर शहर के पश्चिम में रामपुरा चौराहे से 9 किलोमीटर दूर है जहां दुपहिया वाहन से भी जाया जा सकता है।