ऋषभ
जस्ट क्लिक : वेलकम 2 उदयपुर.
कुर्सी कैसी भी हो, टूटी-फूटी हो, कटी-फटी हो, छोटी हो चाहे बड़ी हो, लोहे की हो चाहे लकड़ी की हो, राजा की हो चाहे मंत्री की हो, जैसी भी हो कुर्सी के मोह से कोई नहीं बच सका, चाहे रोडवेज बस की कुर्सी हो या रेल के डिब्बे की कुर्सी हो, तीन की कुर्सी पर पांच मिलेंगे तो चार की कुर्सी पर छह जने एडजस्ट होते हुए नजर आएंगे, कैसे भी हो एक बार थोड़ी सी जगह मिल जाए, फिर तो कुर्सी पर जगह अपने आप ही बनती चली जाएगी..।
अब इन बिल्ली के बच्चों को ही देख लीजिये, कुर्सी टूटी-फूटी है लेकिन वे शायद टूटी-फूटी को समझते, उन्हें तो बस बैठने की जगह चाहिए, एक-दूसरे में सिमटे हुए ये बिल्ली के बच्चे पूरी कुर्सी पर कब्जा जमाए हैं, मजाल है अब इनके अलावा कोई और आ जाए, क्योंकि इनकी संरक्षक इनकी मां भी इनके साथ है..।
कहते हैं एक फोटो हजार शब्दों के बराबर होता है, कोरोना लॉकडाउन के माहौल में कुर्सी पर रिलेक्स मूड में बैठे इस ‘म्याऊँ’ परिवार का यह क्लिक ‘कुर्सी’ के लिए लिखे जाने वाले हजार शब्दों से ज्यादा वर्णन कर रहा है जिसे शब्दों में पिरोना संभव नहीं है।