-कौशल मूंदड़ा-
रूद्र वीणा, जी हां इसके वादक अंगुलियों पर गिनने जितने ही शेष रहे होंगे। सहज नहीं है रूद्र वीणों के तारों को छेड़ना, उनसे सुरों को साधना और फिर मधुर कर्णप्रिय संगीत की ध्वनि तरंगित करना। उदयपुर को इस बात का मान रहा कि यहां भी रूद्र वीणा के वादक के रूप में डाॅ. पण्डित राजशेखर व्यास उसकी गोद में पले बढ़े और न केवल रूद्र वीणा, अपितु साहित्य, इतिहास, संस्कृति, पुरातत्व आदि के क्षेत्र में उदयपुर के इस पुत्र ने नाम रोशन किया, अपना और साथ ही साथ उदयपुर का भी।
वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप की फिल्म की स्क्रिप्ट में व्यस्त थे
विविध प्रतिभाओं के धनी डॉ. राजशेखर व्यास 15 अक्टूबर 2020 को अनंत तरंगों में विलीन हो गए। उनका जन्म 4 अप्रेल 1938 को हुआ था। उनके घनिष्ठों में से एक पुराविद डॉ. ललित पाण्डेय बताते हैं कि उम्र के इस पड़ाव में भी वे वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप पर फिल्म की स्क्रिप्ट लिख रहे थे। फिल्मी दुनिया के जाने-पहचाने फिल्म निर्माता विक्की राणावत के साथ सवा सौ करोड़ की इस फिल्म निर्माण परियोजना में पिछले दिनों महाराणा प्रताप के समय के आभूषणों और पहनावे पर काम कर रहे थे। उनके इतिहास और संस्कृति के प्रति समर्पण का इससे बेहतर उदाहरण क्या होगा कि वे सतत किसी न किसी विषय पर व्यस्त रहते थे। संभवत: यह संस्कार उनमें पारिवारिक माने जा सकते हैं क्योंकि उनके चाचा अक्षयकीर्ति व्यास जाने-माने पुराविद रहे जिन्होंने आहड़ के टीलों के उत्खनन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। डॉ. राजशेखर व्यास के एक पुत्र डॉ. कुलशेखर व्यास भी पुरातत्व के क्षेत्र में ही कार्यरत हैं।
उदयपुर की विभूति डॉ. राजशेखर व्यास जिनका एक नहीं कई विषयों पर संधान था
शिक्षा, संगीत, इतिहास, वास्तु शास्त्र, पुराविज्ञान आदि विषयों में उनकी पकड़ थी। उन्होंने मेवाड़ की कला और वास्तु पर विद्यावाचस्पति की थी। उन्हें कला और संगीत जैसे अनुशासनों पर कार्य करने वाले असाधारण व्यक्तित्व कहा जा सकता है। उन्होंने रूद्र वीणा को राष्ट्रीय स्तर पर स्थापित कर एक ऐसा कीर्तिमान स्थापित किया जो शताब्दियों तक उनको जीवंत रखेगा। वे लगातार रूद्रवीणा वादन एवं रूद्रवीणा प्रशिक्षण करते रहे। रोगग्रस्त होने से पूर्व भी वे रूद्रवीणा निर्माण में व्यस्त रहते थे। उस्ताद जियाउद्दीन डागर जो स्वयं अपनी रूद्रवीणा का निर्माण करते थे उनके द्वारा अपनाई जाने वाली प्रक्रियाओं तथा महाराणा कुम्भा रचित संगीतराज ग्रन्थ के वाद्य रत्नकोष में उल्लिखित वीणा बनाने की प्रक्रियाओं को आधार बनाकर शोध करते हुए रूद्रवीणा का निर्माण एवं इस वाद्य के प्रति लोगों में रुचि जाग्रत करने में संलग्न थे।
पं. व्यास स्पष्ट वक्ता थे और उन्होंने अपने सिद्धांतों से कभी समझौता नहीं किया। वे धर्म दर्शन के भी गहरे अध्येता थे और भागवत कथा के वाचन में कथ्य को रोचक बना आम जनमानस के लिए बोधगम्य बनाना उनकी विशिष्टता थी। उनका राजस्थान पत्रिका में लगातार चार वर्ष तक ‘उदयपुर की गौरव गाथा’ कॉलम प्रकाशित हुआ। व्याख्याता से शुरू हुआ उनका राजकीय सेवा का सफर प्रधानाचार्य, डाइट प्रधानाचार्य से होते हुए जिला शिक्षा अधिकारी तक पहुंचा। उनका लेखन, उनकी संगीत साधना, उनका मार्गदर्शन किसी भी शोधार्थी के लिए प्रेरणा से कम नहीं हो सकता। उनके मार्गदर्शन में 35 शोधार्थियों ने पीएचडी की।

30 से अधिक पुस्तकें प्रकाशित, जिनमें प्रमुख पुस्तकें
- मेवाड़ की कला और स्थापत्य
- भारत का इतिहास एवं संस्कृति भाग 1-2
- विश्व का इतिहास एवं संस्कृति
- राजस्थान का इतिहास एवं संस्कृति
- प्राचीन भारत का इतिहास
- भारतीय इतिहास की मूलधाराएं भाग 1-2
- युग युगीन संसार
- भारतीय संस्कृति का इतिहास
- आर्कीट्रेक्चरल ग्लोरीज ऑफ मेवाड़
- मेवाड़ पेन्टिग
- अ डिक्शनरी ऑफ हिन्दू टेम्पल
- मेवाड़ स्कल्पचर्स
- सामाजिक अध्ययन शिक्षण
- शारीरिक शिक्षा सिद्धान्त एवं व्यवहार
- कक्षा 4 से 12 तक की सामाजिक अध्ययन एवं इतिहास की पुस्तकें
- इंग्लिश एक्सरसाइज
उनको मिले पुरस्कार एवं सम्मान
- 1954 में संगीत के क्षेत्र में उपलब्धि हेतु भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्रप्रसाद से पुरस्कृत।
- 1978 में शारीरिक शिक्षा सिद्धान्त एवं व्यवहार पुस्तक पर अखिल भारतीय प्रथम पुरस्कार प्राप्त।
- 1983 में मेवाड़ के पूर्व महाराणा भगवत सिंह मेवाड़ द्वारा मेवाड़ चेरिटेबल फाउण्डेशन का 10 हजार रुपये के पुरस्कार से सम्मानित।
- 1993 ई. में डॉ. राजेन्द्र प्रकाश भटनागर स्मृति पुरस्कार से सम्मानित।
- 2000 में शिल्पग्राम उत्सव में केन्द्रीय राज्य मन्त्री द्वारा रूद्रवीणा वादन करने पर ‘शिल्पग्राम पुरस्कार’ से सम्मानित।
- 2010-11 में श्री द्वारकेश राष्ट्रीय साहित्य परिषद, कांकरोली द्वारा ‘वीणा वादन एवं वीणा निर्माण’ के प्रसंग में सम्मानित।
- 2010-11 में इन्फीनिटी सोसायटी, अमेरिका द्वारा ‘मेवाड़ विभाग के पुरातत्वविद एवं कला इतिहासवेत्ता’ के रूप में सम्मानित।
- 2011-2012 में साहित्य-मण्डल, श्रीनाथद्वारा द्वारा आयोज्य पाटोत्सव ब्रजभाषा समारोह में ‘इतिहासविद् एवं शिक्षाविद् के रूप में सारस्वत सम्मान एवं इतिहासविज्ञ की मानद उपाधि’ से सम्मानित।
- 2018 में आठवें ध्रुपद समारोह एवं विशिष्ट अलंकरण समारोह में ‘मेवाड़ रत्न अलंकरण’ से सम्मानित।
- 2018 में स्वतंत्रता सेनानी ओंकारलाल शास्त्री स्मृति पुरस्कार ‘मेवाड़ गौरव अलंकरण’ से सम्मानित।
- 2019 बनारस में ‘महाराजा स्वाती तिरुनाल पुरस्कार, त्रावण कोर’ द्वारा स्मृति चिह्न, शॉल, नकद 25 हजार रुपये से सम्मानित।
- 2019 में संस्कार भारती एवं पं. जगन्नाथ प्रसाद स्मृति मंच उदयपुर द्वारा ‘सप्त ऋषि कालगुरु सम्मान’ से सम्मानित।
(लेखक पत्रकार हैं)