-कौशल मूंदड़ा-
WELCOME 2 UDAIPUR। जी हां, वे उदयपुर की प्रखर आवाज थे, वे उद्योग जगत से थे, लेकिन सिर्फ उद्योग जगत से ही सरोकार नहीं रखते थे, उदयपुर से जुड़ी हर समस्या से उनका सरोकार होता था, अब आप ही बताइये कि रेलवे के सीनियर सिटीजन के टिकट के पीछे अंकित होने वाली पंक्ति, जिसकी इबारत हर सीनियर सिटीजन को चुभ सकती है, उसके लिए भी उन्होंने पत्र लिखा। उन्हें किस बात की कमी या जरूरत थी कि वे इस मुद्दे पर लिखते, लेकिन उन्होंने उस पत्र में सख्त शब्दों में लिखा कि क्या जनप्रतिनिधियों और सरकारी अधिकारियों के छूट वाले टिकटों के पीछे भी यह लिखा जाएगा जो कि करदाताओं के कर से ही वेतन-भत्ते पा रहे हैं।
ऐसे ही व्यक्तित्व के धनी थे स्व. श्री के.एस. मोगरा। यह छोटा सा उदाहरण यह बताने के लिए काफी है कि उनके लिए छोटी सी समस्या भी चिंतन का विषय होती थी, वे यह सोचते थे कि यह बाद में जाकर कितनी परेशानी बन सकती है। छोटी बात पर भी चिंतन करने वाले श्री मोगरा बड़ी समस्याओं के समाधान में भी मुखर रहते थे।
ऐसा ही एक वाकिया है जब उदयपुर-अहमदाबाद आमान परिवर्तन के लिए राजस्थान पत्रिका ने 15 साल पहले पोस्टकार्ड अभियान छेड़ा था। उदयपुर शहरवासियों के साथ मैं भी उन खुशनसीबों में शुमार हूं जो इस अभियान में पत्रिका टीम का अहम हिस्सा थे। हालांकि, उदयपुर-अहमदाबाद ब्रॉडगेज की मांग इस अभियान से भी पुरानी है, लेकिन तब पोस्टकार्ड अभियान के जरिये यह जन-जन का अभियान बना जिससे हर समाज, हर संस्था जुड़ी और यहां तक कि यह अभियान राजस्थान पंचायती राज शिक्षक संघ के सहयोग से इस रेलमार्ग पर स्थित डूंगरपुर तक भी पहुंचा था। इसी दौरान एक बात यह सामने आई थी कि राज्य यदि आधी राशि देने को तैयार हो जाए तो केन्द्र इस परियोजना की आधी राशि देगा और रेलवे काम शुरू करवा सकता है। यह रेलवे की नीति है कि कोई परियोजना जब रेलवे के लिए मुफीद नहीं होती और राज्य सरकार उसे अपने राज्य के लिए जरूरी मानती है तो लागत का आधा खर्च राज्य मिलाता है और केन्द्र आधे खर्च को मिलाकर हरी झण्डी देता है।
इसी के तहत उस समय जब उदयपुर की मांग पर बात आगे बढऩे लगी तो इस परियोजना के लिए यह मुद्दा भी सामने आया। तब तक परियोजना की लागत लगभग 300 करोड़ आंकी गई थी। ऐसे में राज्य सरकार के हिस्से वाले खर्च में 150 करोड़ रुपये आने थे। राज्य सरकार की ओर से इस मामले में रुचि की कमी नजर आने पर श्री मोगरा ही थे जिन्होंने यह ऐलान कर दिया कि 75 करोड़ रुपये उदयपुर इस परियोजना के लिए एकत्र कर लेगा। उदयपुर सिटीजन सोसायटी के बैनर तले उन्होंने यह ऐलान करके सभी को चौंका दिया था और इस खबर ने सरकार के भी कान खड़े कर दिए थे। ऐसा होना भी तय था क्योंकि कोई भी संस्था किसी सरकारी परियोजना के लिए इस तरह का ऐलान कर दे तो पूछताछ होनी ही है। श्री मोगरा ने बाद में बताया था कि इस ऐलान की खबर प्रकाशित होने के अगले ही दिन तत्कालीन कलक्टर ने उनसे इस मामले में गंभीरपूर्वक वार्ता की थी और यह जानना चाहा था कि वे इतनी राशि कहां से लाएंगे। हालांकि, तब श्री मोगरा ने इसकी गणित समझाई थी कि यह राशि कहां से आ सकती थी। लेकिन, उन्होंने इसे अप्रकाशनीय ही रखने को कहा।
उदयपुर-अहमदाबाद आमान परिवर्तन के लिए तब उदयपुर सिटीजन सोसायटी के दो शख्स सरकार, जनप्रतिनिधियों, रेलवे अधिकारियों से काफी पत्र व्यवहार में सक्रिय थे, वे थे श्री मोगरा और उनके अभिन्न मित्र सिटीजन सोसायटी के ही स्व. श्री आर.एम. कुम्भट। सिटीजन सोसायटी के बैनर तले तब जनप्रतिनिधियों की एक गोष्ठी इसी मुद्दे को लेकर कराई गई थी। खैर, उस वक्त का आंदोलन रंग लाया और आज इस परियोजना का काम अंतिम चरणों में है। उम्मीद है 2021 में हम अहमदाबाद तक ब्रॉडगेज लाइन पर रेलगाड़ी में सफर कर पाएंगे।
वे सिर्फ रेल विकास के ही नहीं, औद्योगिक विकास के प्रति भी नजरिया रखते थे और उसके साथ पर्यावरण संरक्षण की भी चिंता करते थे। औद्योगिक अपशिष्ट निस्तारण प्लांट (हेजार्डियस वेस्ट) को स्थापित करने में भी उनकी महती भूमिका रही। उदयपुर चैम्बर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री के अध्यक्ष और बाद में संरक्षक रहते हुए उन्होंने औद्योगिक विकास का भी नजरिया स्थापित किया।
इतना ही नहीं, कई किस्से ऐसे भी उनके याद आते हैं जो वे बातों-बातों में सुनाया करते थे। करीब 14-15 साल पहले विश्व की नामी सॉफ्टवेयर कम्पनी के कारण उदयपुर के कम्प्यूटर व्यवसायी परेशान हो रहे थे, तब भी इसका समाधान कराने में श्री मोगरा की भूमिका रही। कानूनी नियमों सहित राज्य और केन्द्र सरकार की नीतियों की बारीकियों की जानकारी भी उनके पास रहती थी।
उनकी एक लाइन आज भी मुझे याद है जिस पर हर बार चर्चा होती थी, वह लाइन है ‘मन्ने कई मलेगा’। वे सरकारी तंत्र में व्याप्त इस मानसिकता के प्रति गंभीर थे। हॉस्पिटल जैसी जगह जहां व्यक्ति के जीवन-मृत्यु का सवाल होता है, वहां भी इस तरह की मानसिकता को वे नैतिक गिरावट की संज्ञा देते थे। पिछले साल उनसे जब भी मुलाकात हुई, बातचीत में सामाजिक और व्यक्तिगत मूल्यों के हो रहे पतन का विषय भी शामिल रहा।
आज वे हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी चिंता और उनका चिंतन दोनों ही उतने ही प्रासंगिक हैं।
(लेखक पत्रकार हैं और लम्बे समय तक राजस्थान पत्रिका से जुड़े रहे हैं)