कौशल/ऋषभ
वेलकम टू उदयपुर। उदयपुर में नगर निगम के नए बोर्ड के गठन के बाद ही हैप्पी न्यू ईयर आया और स्मार्ट सिटी के कार्यों के साथ इज ऑफ लिविंग का सर्वे भी आप तक आ रहा है। नगर निगम ने राजस्व बढ़ाने के लिए यूडी टैक्स पर फोकस किया है। नए साल के साथ अपने पूरे कार्यकाल में पार्षद अपने उदयपुर के लिए कैसा सपना देखते हैं, उदयपुर के एक छोटे से हिस्से के लिए वे जिम्मेदार होने के नाते किन कार्यों को तरजीह देंगे, इसके लिए वेलकम टू उदयपुर टीम ने पार्षदों के दिल को टटोला।
आइये जानते हैं, वार्ड-53 के पार्षद कुलदीप जोशी जिन्हें गोपाल जी के नाम से ज्यादा जाना जाता है, ने अपने क्षेत्र की किन जरूरतों और पार्षद के दायित्वों को हमारे साथ शेयर किया।
पार्षद जोशी वेलकम टू उदयपुर टीम से बातचीत के दौरान याद करते हुए बताते हैं कि गुजरात भूकम्प के दौरान वे और उनके तत्कालीन साथियों ने दो ट्रक राहत सामग्री एकत्र की थी। एक तो गुजरात के भुज में बांट दी गई और दूसरी में कुछ सामग्री खराब हो गई और काफी सामग्री बच गई। बची हुई सामग्री से उन्होंने लंगर लगाया और तब पिछोला झील खाली थी। बाघपुरा-मादड़ी के श्रमिकों को यहां लगाकर करीब 100 ट्रक पणा निकाला गया। वे कहते हैं ऐसे कार्यों के प्रति शुरू से रुझान रहा, ऐसे में पार्षद बनकर सिस्टम में शामिल होकर अपने क्षेत्र की समस्याओं के समाधान करने का मानस रहा।
कुलदीप कहते हैं कि इस साल उनका पूरा ध्यान ट्रैफिक सिस्टम पर रहेगा। उन्होंने जनता से भी अपील की है कि वन-वे के नियम का पालन करें ताकि ना आप जाम में फंसें, न ही दूसरा।
क्षेत्र की प्रमुख पांच समस्याएं
- सबसे बड़ी पार्किंग और ट्रैफिक की समस्या, जिसके लिए क्षेत्रवासियों का सहयोग जरूरी है।
- आसीन्द की हवेली के पास एकत्र होता कूड़ा-करकट, पर्यटन क्षेत्र होने से इसे स्थानांतरित करना जरूरी है।
- इधर-उधर घूमते मवेशी, जिनमें ज्यादातर श्वान हैं और श्वानों को पकडऩे पर रोक लगी हुई है।
- सिवरेज की समस्या, झीलों में गिरता सिवरेज, हालांकि इस पर स्मार्ट सिटी के तहत काम चल रहा है।
- पेयजल की समस्या है, लेकिन यह भी स्मार्ट सिटी के काम पूरे होने पर दुरुस्त हो जाएगी।
पार्षद का एक और प्रस्ताव
-कुलदीप बताते हैं कि क्षेत्र में कुछ तो पर्यटन विभाग की ओर से लाइसेंस प्राप्त गाइड हैं जिन्हें अधिकृत कहा जाता है। जबकि, इस क्षेत्र में मामूली पढ़े-लिखे ऐसे लोग भी हैं जो अन्य देशों की भाषाओं में पारंगत हैं और वे काम कर रहे हैं, लेकिन उन्हें ‘अवैध’ ठहरा दिया जाता है। यदि नगर निगम एक योजना बनाकर ऐसे कम पढ़े-लिखे लोगों को अधिकृत रूप से लाइसेंस प्रदान करें, तो ये सभी प्रशासन की नजर में भी रहेंगे और इन प्रतिभाओं पर लगा ‘अवैध’ का तमगा दूर हो जाएगा। साथ ही, निगम को भी लाइसेंस के जरिये राजस्व प्राप्त होगा। दरअसल, पर्यटन विभाग उन्हीं को लाइसेंस देता है जो निर्धारित शैक्षणिक अर्हता रखते हैं।