कौशल ऋषभ,
उदयपुर, 23 मई . वनक्षेत्र के आकार में कमी होने तथा अनुकूल वातावरण उपलब्ध नहीं होने के कारण वन्यजीवों के क्षेत्र-विशेष से विलुप्त होना कोई नई बात नहीं है, परंतु ऐसे ही वन्यजीवों के वनक्षेत्र से विलुप्त हो जाने के बाद सफल पुनर्वास किया जाए तो इसे सुखद उदाहरण माना जा सकता है। ऐसे ही तीन सफल प्रयास उदयपुर के वन विभागीय अधिकारियों द्वारा किए जा चुके हैं, जिनमें से एक प्रयास का एक वर्ष मई में ही पूर्ण हो रहा है।
उदयपुर शहर से लगभग पचास किलोमीटर दूर 50 वर्ग किलोमीटर में पसरे जयसमंद वन्यजीव अभयारण्य कभी 1950 में अधिसूचित किया गया था। यह क्षेत्र कभी मेवाड़ राज्य के तत्कालीन शासकों के लिए खेल रिजर्व था और मेवाड़ के महाराणा द्वारा की जाने वाली वार्षिक बाघ शूटिंग इस रिजर्व से शुरू होती थी। गेम रिजर्व होने वाला क्षेत्र वन्यजीवों से समृद्ध था, जिसमें टाइगर, पैंथर, हाइना, भेडिय़ा, सियार, जंगल बिल्ली, जंगली सूअर, चिंकारा, सांभर, चित्तीदार हिरण और अन्य जानवर शामिल थे। आजादी के बाद, कई कारणों से, इस रिजर्व में टाइगर के साथ अन्य वन्यजीवों में एक खतरनाक गिरावट देखी गई। इन स्थितियों में चीतल और सांभर के पुनर्वास के लिए पहल की भारतीय वन सेवा के अधिकारी और तत्कालीन मुख्य वन संरक्षक (वन्यजीव) राहुल भटनागर ने और यहां पर लुप्तप्राय हो चुके चीतल और सांभर का पुनर्वास किया गया।
भटनागर बताते हैं कि वे वर्ष 1984 से लगातार जयसमंद अभयारण्य में जाते रहे हैं परतु यहां कभी भी चीतल और सांभर की साइटिंग नहीं हुई। इन जीवों के लिए अनुकूल क्षेत्र में इनकी गैर मौजूदगी दु:खद थी इसलिए एक कार्ययोजना बनाई गई और वर्ष 2014 में 18 चीतल और वर्ष 2017 व 2019 में 23 सांभर इस अभयारण्य में पुनर्वास के लिए मुक्त किए गए। उन्होंने बताया कि 2 सितम्बर 2014 को शिकारबाड़ी मिनी चिडिय़ाघर से 18 चीतल (10 नर और 8 मादा) को तथा 30 अप्रैल 2017 से 7 मई 2017 तक के बीच में 5 सांभर (2 नर और 3 मादा) को दिल्ली गोल्फ कोर्स से तथा 10 सांभर (3 नर और 7 मादा) को 11 मई 2019 को और 8 सांभर (3 नर और 5 मादा) को 18 मई 2019 को दिल्ली चिडिय़ाघर से जयसमंद अभयारण्य में लाया गया।
भटनागर ने बताया कि इन समस्त वन्यजीवों को यहां अभयारण्य में मुक्त करने के लिए केन्द्रीय चिडिय़ाघर प्राधिकरण के निर्देशों के अनुरूप पहले 21 दिन एकांतवास में रखना जरूरी था। इसके लिए जयसमंद अभयारण्य स्थित डिमड़ा बाग में पुनर्वास केन्द्र स्थापित करते हुए इन जीवों को यहां रखने की समस्त व्यवस्थाएं की गई। इस अभयारण्य में पैंथर्स की बड़ी संख्या को देखते हुए पुनर्वास केन्द्र को पैंथर प्रूफिंग किया गया। शिफ्ट किए गए वन्यजीवों के लिए वॉटरहॉल बनाए गए और सांभर के लिए पुनर्वास केंद्र के अंदर बाड़ा भी बनाया गया।
चीतल और सांभर के पुनर्वासों के प्रयास तत्कालीन मुख्य वन संरक्षक राहुल भटनागर के नेतृत्व में विभाग के कई अधिकारियों व कार्मिकों की मेहनत का परिणाम है। वर्ष 2010 से 2014 की वन्यजीव गणना में चीतल की मौजूदगी नहीं देखी गई वहीं वर्ष 2018 व 2019 की वन्यजीव गणना के आंकड़ों में इस अभयारण्य में 32 चीतल देखे गए हैं। इधर, सांभर के बारे में जयसमंद अभयारण्य के रेंजर गौतमलाल मीणा की रिपोर्ट के अनुसार, अभयारण्य में दो नए जन्मे और 15-16 सांभर के दो झुंड जंगल में नियमित रूप से देखे जाते हैं।
इस सम्बंध में उदयपुर के मुख्य वन संरक्षक (वन्यजीव) आर.के. सिंह कहते हैं कि जयसमंद अभयारण्य जैव विविधता की दृष्टि से समृद्ध है और वन विभाग द्वारा इसमें चीतल और सांभर के पुनर्वास के प्रयास किए गए थे और इनकी आबादी भी बढ़ी है, यह सुखद है। चीतल की संख्या में बढ़ोत्तरी तो गत वर्षों में हुई वन्यजीव गणना में दर्ज हुई है परंतु गत वर्ष मुक्त किए गए सांभर की संख्या तो उप वन संरक्षक अजीत ऊंचोई के निर्देशन में इस अभयारण्य में 5 जून को होने वाली गणना में ही प्राप्त हो सकेगी।
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