श्री गुरु नानक देव जी के प्रकाश पर्व पर उदयपुर में हुए विशेष आयोजन
उदयपुर। कार्तिक पूर्णिमा पर सिख समाज ने सिख पंथ प्रवर्तक श्री गुरु नानक देव का प्रकाश पर्व मनाया। इस अवसर पर उदयपुर के विभिन्न गुरुद्वारों मंे भी कई आयोजन हुए। गुरुद्वारों में कीर्तन दरबार सजा, लंगर प्रसाद बंटा। उदयपुर के प्रमुख गुरुद्वारे गुरुद्वारा सचखण्ड दरबार में सुबह शबद कीर्तन हुए। समीप ही स्थित ईशरन्यास बारातघर में लंगर बंटा।
जानिये गुरु नानक देव जी के बारे में
श्री गुरु नानक देव जी का जन्म रावी नदी के किनारे स्थित तलवंडी नामक गांव (जिसका नाम आगे चलकर ननकाना पड़ गया) में कार्तिक पूर्णिमा को एक खत्री परिवार में हुआ। कुछ विद्वान इनकी जन्मतिथि 15 अप्रैल, 1469 मानते हैं, परंतु इनका जन्म दिवस हर साल कार्तिक पूर्णिमा वाले दिन ही मनाया जाता है, जो अक्टूबर-नवंबर में दिवाली के करीब 15 दिनों बाद पड़ता है। उनके पिता का नाम मेहता कालू और माता का नाम तृप्ता देवी था, जबकि बहन बेबे नानकी थीं।
गुरु साहिब बचपन से ही प्रखर बुद्धि के स्वामी थे। लड़कपन से वे सांसारिक मोहमाया के प्रति काफी उदासीन रहा करते थे। पढ़ने-लिखने में बिल्कुल भी रुचि नहीं थी, लेकिन उनका सारा समय आध्यात्मिक चिंतन और सत्संग में व्यतीत होता था। उनके बाल्यकाल में कई ऐसी चमत्कारी घटनाएं हुई, जिसके बाद लोग उन्हे दिव्य शख्सियत मानने लगे।
सोलह वर्ष की आयु में बाबा जी का विवाह पंजाब के गुरदासपुर जिले के तहत पड़ने वाले लाखौकी गांव की रहने वाली कन्या सुलक्खनी से हो गया। उनके दो पुत्र श्रीचंद और लखमीदास हुए। बेटों के जन्म के बाद बाबा नानक अपने परिवार के भरण-पोषण की जिम्मेदारी ससुर पर छोड़कर अपने चार साथियों मरदाना, लहना, बाला और रामदास के साथ तीर्थयात्रा पर निकल पडे़।
गुरु साहिब चारों दिशाओं में घूम-घूम कर लोगों को उपदेश देने लगे। 1521 ईस्वी तक उन्होंने चार यात्रा चक्र पूरे किए, जिनमें भारत, अफगानिस्तान, फारस और अरब के मुख्य स्थान शामिल थे। इन यात्राओं को पंजाबी में उदासियाँ के नाम से जाना जाता है। गुरु नानक देव जी मूर्तिपूजा में विश्वास नहीं रखते थे। नानक जी के अनुसार ईश्वर कहीं बाहर नहीं, बल्कि हमारे अंदर ही है। उन्होंने हमेशा ही रुढ़ियों और कुरीतियों का विरोध किया। उनके विचारों से नाराज तत्कालीन शासक इब्राहिम लोदी ने उन्हें कैद तक कर लिया था। पानीपत की लड़ाई में इब्राहिम लोदी हार गया और राज्य बाबर के हाथों में आ गया, तो उन्हें कैद से मुक्ति मिली।
गुरुनानक देव जी का जीवन सदैव समाज के उत्थान में बीता। उस समय का समाज अंधविश्वासों और कर्मकांडों के मकड़जाल में फंसा हुआ था। ऐसे जटिल दौर में गुरुनानक देवजी ने प्रकट होकर समाज में आध्यात्मिक चेतना जगाने का जो काम किया, उसे कभी भी भुलाया नहीं जा सकता है। गुरुनानक देव जी ने अपने उपदेशों में निरंकार पर जोर दिया। उन्होंने कहा धार्मिक ग्रंथ का ज्ञान ऐसी नैया है, जो अंधविश्वास के भवसागर से पार उतारती है। ये ज्ञान हमें निरंकार के देश की तरफ लेकर जाता है, जिसके समक्ष सिख आज भी नतमस्तक होते हैं। सिखमत का आगाज ही ‘एक’ से होता है। सिखों के धर्म ग्रंथ में ‘एक’ की ही व्याख्या है। एक को निरंकार, पारब्रह्म आदि नामों से जाना जाता है। निरंकार का स्वरूप श्रीगुरुग्रंथ साहिब की शुरुआत में बताया है जिसे आम भाषा में गुरु साहिब के उपदेशों का ‘मूल मन्त्र’ भी कहते हैं। यह ग्रंथ पंजाबी भाषा और गुरुमुखी लिपि में है। इसमें मुख्यतः कबीर, रैदास और मलूकदास जैसे भक्त कवियों की वाणियां सम्मिलित हैं।
उनकी भाषा ‘बहते पानी’ की तरह थी जिसमें फारसी, मुल्तानी, पंजाबी, सिंधी, खड़ी बोली, अरबी के शब्द समा गए थे। श्री गुरुग्रन्थ साहिब में सम्मिलित 974 शब्द (19 रागों में), गुरबाणी में शामिल हैं।