आखिर अभिभावकों के दर्द को मिली दवा, पाठ्यक्रम के अनुपात में होगी फीस
राज्य सरकार को आपदा में जनहित के निर्णय का पूरा अधिकार
निजी स्कूलों को अपनी वेबसाइट पर देना होगा फीस का वर्गीकरण सहित ब्योरा
कितनों को निकाला, किसे कितनी सैलरी, यह भी वेबसाइट पर देना होगा
फीस एक्ट 2016-2017 की पालना अनिवार्य
उदयपुर, 18 दिसम्बर। कोरोना काल में निजी स्कूलों की फीस के विवाद पर राजस्थान उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को फैसला सुनाते हुए कहा है कि राज्य सरकार को आपदा में जनहित के निर्णय का पूरा अधिकार है। सरकार निजी स्कूलों की फीस तय कर सकती है। साथ ही, निजी स्कूल पाठ्यक्रम के अनुपात में ही सिर्फ ट्यूशन फीस का 60 (आरबीएसई) व 70 (सीबीएसई) हिस्सा ले सकते हैं। यह फीस भी राजस्थान फीस नियामक अधिनियम के तहत होनी चाहिए जिसके लिए निजी स्कूलों को अपना फीस स्ट्रक्चर (विभिन्न मदों सहित) अपनी वेबसाइट पर जाहिर करने के आदेश दिए गए हैं। निजी स्कूलों को नोटिस बोर्ड और वेबसाइट पर यह भी बताना होगा कि कोरोना आपदा के समय उन्होंने कितने स्टाफ को निकाला और मौजूदा स्टाफ को कितनी सैलरी दी। यह काम स्कूलों को 2 माह में करना होगा।
माननीय न्यायालय के फैसले के बाद अभिभावकों की ओर से पक्ष रख रहे वरिष्ठ अधिवक्ता डाॅ. रमनदीप सिंह ने बताया कि यह अभिभावकों और राज्य सरकार दोनों की जीत है। निजी स्कूलों ने पक्ष रखा था कि सरकार को निजी स्कूलों की फीस तय करने का अधिकार नहीं है जिसे माननीय न्यायालय ने खारिज करते हुए कहा कि आपदा अधिनियम के तहत सरकार को जनहित को निर्णय करने का पूर्ण अधिकार है। राज्य सरकार के 28 अक्टूबर को जारी आदेश को माननीय न्यायालय ने मान्य किया है। पाठ्यक्रम कम ज्यादा होने पर फीस भी कम ज्यादा करने का सरकार के पास अधिकार है। न्यायालय ने फीस नियामक अधिनियम के तहत फीस तय करने के लिए गठित की जाने वाली समितियों का 15 दिन में गठन करने का आदेश दिया है। फीस नियामक अधिनियम के तहत यदि अभिभावक समिति को कोई आपत्ति होती है तो वे डिविजनल कमिश्नर पर अपील कर सकते हैं। आगे की फीस भी फीस नियामक अधिनियम के तहत ही तय की जाएगी।
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School fee matter order DB
ऑनलाइन कक्षाओं के लिए कैपेसिटी बिल्डिंग शुल्क पर अधिवक्ता डाॅ. सिंह ने बताया कि जहां तक ऑनलाइन कक्षाओं की बात है तो यह सामान्यतौर पर स्पष्ट होना चाहिए कि वह भी पाठ्यक्रम के आधार पर ली जाने वाली ट्यूशन फीस का ही हिस्सा होगा। एक ही पाठ्यक्रम के लिए दो तरह से फीस नहीं ली जा सकती। हालांकि, कैपेसिटी बिल्डिंग शुल्क के सम्बंध में निजी स्कूल भी असमंजस में हैं। फिलहाल निजी स्कूलों ने फैसले की समीक्षा के बाद ही किसी भी तरह के बयान की बात कही है।
अभिभावक संघ के हरीश सुहालका का कहना है कि यह फैसला अभिभावक और राज्य सरकार के पक्ष में हुआ है। माननीय न्यायालय ने फीस नियामक अधिनियम की अक्षरशः पालना के निर्देश दिए हैं जो सिर्फ कोरोना काल के लिए ही नहीं, हमेशा के लिए अभिभावकों को फीस के भारी-भरकम बोझ से संरक्षित करेंगे।