विश्व पर्यावरण दिवस पर उदयपुर की रीटा महाजन ने
welcome2udaipur.com से साझा किए अनुभव
भोर होते ही कोयल की कूहू-कूहू, तोतों की अठखेलियां, गौरेया का फुदकना अब रोज कहां नसीब होता है। इसका आनंद लेने के लिए या तो हम गांवों में रहने वाले हमारे दादा-नाना के यहां जाते हैं या किसी मित्र के फार्म हाउस पर। शहरी क्षेत्र में तो पंछियों का कलरव सुबह-शाम अपने घर पर सुनाई देना असंभव सा हो गया है।
लेकिन, हम सभी जानते हैं कि जब हम पंछियों का गीत सुनकर सुप्रभात करते हैं तो मन उमंगों से भरा होता है, दिमाग शीतल होता है, शरीर तरोताजा हो जाता है। कारण, जहां पंछियों का कलरव है वहां हरियाली भी होगी ही। बिना हरियाली पंछी कहां। तो कहने का तात्पर्य है कि हमें यदि अपनी हर सुबह को मनोहारी बनाना है, उमंगों से भरा अहसास पाना है तो सबसे पहले हमें हरियाली अपनानी होगी। हमारे आसपास का वातावरण हरा-भरा करना होगा।
अब सवाल यह उठ सकता है कि शहरी क्षेत्र की घनी आबादी वाले मकानों, फ्लैट में रहने वालों के लिए अपने आसपास हरियाली करना संभव है क्या, तो इस सवाल का जवाब हमें मिलेगा उदयपुर के अम्बामाता में रहने वाली श्रीमती रीटा महाजन से।
विश्व पर्यावरण दिवस पर श्रीमती रीटा महाजन ने welcome2udaipur.com से अपने अनुभव साझा करते हुए कहा कि जब आज हर सुबह जैसे ही पंछियों की चहचहाट सुनाई देती है तो उन्हें दोहरी खुशी होती है। एक तो पंछियों की चहचहाट से मिलने वाला आनंद, दूसरा उनकी मेहनत का जिसके बूते आज पंछी उनकी छत और बालकनी में मेहमान बनके आते हैं।
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पहले उन्होंने अपनी बालकनी को हरियाली से सजाने में मेहनत की। बच्चों की तरह नन्हें पौधों की सार-संभाल की। रोजाना सुबह उठकर जिस तरह एक मां अपने बच्चों को नाश्ता-दूध के लिए मनाती है, वैसे ही इन पौधों को उन्होंने सुबह-सुबह खाद-पानी दिया। उन पौधों पर पीली पड़ जाने वाली पत्तियों को हटाने का क्रम भी नियमित रखा। आखिरकार जब उन पौधों में फूल खिलखिलाने लगे तो उन्हें देख वे भी मुस्कुरा उठतीं।
कुछ समय बाद उन्होंने अपार्टमेंट की छत के छोटा हिस्से को भी इसी तरह हरा-भरा करने का काम शुरू किया। यहां उन्होंने बड़े गमले लिये ताकि जो पौधे धीरे-धीरे कुछ ऊंचाई पर चढ़ते हैं, उनकी जड़ों के लिए गमला पर्याप्त रहे। पीपल, गुलमोहर, अनार, चाइनीज ओरेंज, चीकू आदि के पौधे उन्होंने लगाए। यहां उन्होंने एक काम और किया कि बर्ड फीडर्स भी लगाए। कुछ समय में जब पौधे लहलहाने लगे, उन पर पुष्प पल्लवित होने लगे और जब छोटे आकार के फल भी फलने लगे तो मेहमान कहां रुक सकते थे। अब उनकी छत पर रोजाना सुबह-शाम तोते अठखेलियां करते हैं, चिड़िया चहचहाती है। और सदियों का अनुभव है प्रकृति की गोद में, हरे-भरे वातावरण में, पंछियों के गीतों में, जल की कलकल में, मनुष्य अपना सारा तनाव भूल जाता है। नई ऊर्जा, नई उमंग का अहसास पाता है।
श्रीमती रीटा महाजन कहती हैं, हम बड़ी – बड़ी बातों पर क्यूं जाएं, छोटे से भी शुरुआत की जा सकती है। घर की छत पर जगह हो तो बंदरों से कुछ सुरक्षा व्यवस्था कर फुलवारी लगाई जा सकती है। फ्लैट में रहने वालों के पास भी बालकनी तो होती ही है, चालीस नहीं तो चार गमलों में ही खुशियों के फूल लगाए जा सकते हैं।
वैसे, हमारे घरों की छतों पर तुलसी का पौधा अवश्य मिल जाता है और घर की महिलाएं सुबह जलअर्पण और शाम को दीपअर्चन जरूर करती हैं। बस उसी के आसपास और भी खूबसूरत फूलों वाले पौधे लगाकर अपने घर के माहौल को हरा-भरा ऑक्सीजन युक्त बनाएं। सुबह-शाम उन पौधों को संभालने जाएं ताकि उनके आसपास के ऑक्सीजन बैंक का लाभ आपके स्वास्थ्य को मिले। उनके रंगों से आपको जीवन के इंद्रधनुषी रूप का अहसास हो। हर दिन नई तरंगों को महसूस करें।